
Neha Tickoo is from J&K and currently working as a teacher in Vega Schools, Gurgaon. She has done MSc Electronics from Jammu University and B.ed from Kashmir University. She started writing poetry from her childhood only. Her poetries were published in an Anthology 'Kahi Ankahi' in 2019, also has been published in the local newspaper of Jammu- ’Kashmir Times'. One of her Saraswati Vandana is included in the Saraswati Vandana app, along with writing poetry she loves doing art, craft and dancing.
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लोग क्या कहेंगे
चल तो पड़ी थी ढूंढने अपने नए से रास्ते,
जहां खौफ न हो फिकर ना हो रिवायतों के वास्ते,
क्यों रुक गए मेरे कदम फिर सोंच के वहीं
कि लोग क्या कहेंगे……….जीने की ख्वाहिश में जिए जा रहे है सब मगर,
क्यों ज़िन्दगी गुज़र रही हैं फिर यही बस सोचकर,
कि लोग क्या कहेंगे………..कितनी ही मन की मन में रही ना आने दी ज़ुबान पर,
अपने कहे हर लफ्ज़ को टटोलते रहे यह बोलकर,
कि लोग क्या कहेंगे………..पायल मेरी शोभा से ज़्यादा बन गई ज़ंजीर है,
उसके दिए हर घाव को फिर भी रखा सहेज कर,
कि लोग क्या कहेंगे………..जानकर सबको यहां हम खुद से ही अंजान है,
शक्सियत को खुद की खुद से ही छुपाया सोचकर,
कि लोग क्या कहेंगे………..
माँ मैं तुझ सी ना बन पाई
यूँ तो हूँ मैं रंग रूप में तेरी ही परछाई,
सीखे सारे बोल है तुझसे ,
हर तालीम है पाई,
पर तुझ जैसे होकर भी मां,
मैं तुझ सी ना बन पाई।
माँ मैं तुझ सी ना बन पाई।सफलता पर मेरी
सबने लूटी थी वाह वाही
तो क्यों मेरी हर गलती पर
तेरी परवरिश ने ही सज़ा पाई।
तूने ही इक बस खामी मेरी,
हर दम गले लगाई।
फिर भी माँ मैं तुझ सी ना बन पाई।सदा बताई अपने मन की,
तेरी जान पाई।
निस्वार्थ प्रेम में तुमने मां थी,
खुशियाँ अपनी भुलाई।
तेरे त्याग समर्पण का,
तू कभी भी मोल ना पाई।
फिर भी माँ मैं तुझ सी ना बन पाई।छोड़ तेरे आंचल का साया
जब दुनिया नई बसाई।
हर चेहरे में ढूँँढां तुझको पर,
तेरी सूरत ना पाई।
खुशियों में भले ही भूल गई
मुश्किल में तू ही याद आई।
नमन है उन चरणों में ऐ मां,
जिसकी धूल मात्र ना बन पाई।
माँ मैं तुझ सी ना बन पाई।
माँ मैं तुझ सी ना बन पाई।
परोपकार
इक लम्हे में ना तोलना
मैं तो वर्षों का परिणाम हूं,
गड़ा बीज था जो ज़मीन में,
आज पेड़ छायादार हूं।ख़ाक से उपजा हूं में,
और ख़ाक ही हो जाऊंगा।
सांसों से जीवन देके मैं,
दुनिया का हित्त कर जाऊंगा।संस्कारों से सींचा गया,
आदर्शो के सहारे बड़ा,
कड़ी धूप में खड़ा था पर,
दूजों के लिए साया बना।परिस्थिति रही जैसी मगर,
मैं अटल अडिग डटा रहा।
उभरता रहा तूफ़ानों से,
समय की मौजों में ना बहा।कई थे यहां मुझसे मगर,
मुझमें अलग कुछ बात थी,
चंदन की खुशबू की तरह,
विष को थी मैंने मात दी।मिला जो जीवन था मुझे,
ईश्वर का वह उपकार था।
मृत्यु को भी पराजित कर सका,
चूंकि साथ परोपकार था।