
An epitome of simplicity and grace, Mrs. Meena Sood belongs to Palampur, Himachal Pradesh. A graduate in sciences and a post-graduate diploma holder of computers, she continued to work after marriage in the field of teaching. Married to an Army Officer, she took every opportunity that came her way. Being a visharad in Indian classical music, she also composed a song for an Army Division which was widely appreciated. A prolific writer, she also published two books on Hindi poetry, called 'Kriti meri abhivyakti' and 'Aakhar dil ke'. Her work has been published in numerous newspapers, magazines, national and international anthologies, etcetera, which have won her a position in the field of poetry and she's here to stay! Besides poetry, she also writes ghazals and short stories. She has been a regular guest speaker at Akashvani and Doordarshan on varied social subjects besides poetry recitation. She has traveled across India and abroad and has understood the world in her own unique way. She strives to seek knowledge and through her work, wants to promote positivity in the lives of everyone. Her motto in life is to live and let live and she quite clearly lives the quote!
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महक उठे हर ज़र्रा मेरा
बरस के आसमान ने धरती से कहा
यह प्रणय निवेदन स्वीकार करो मेरालजा के, कुछ मुस्कुरा के, धरा यूँ बोली …
भीग गयी हूँ तेरे आलिंगन में
मैं कुछ यूँ
कि बचा नहीं मुझमें कुछ मेरा।
कुछ इस तरह बरस तू मुझ पर
कि बुझ जाए जन्मों की प्यास
महक उठे हर ज़र्रा मेरा
कुछ ऐसा हो अपना मधुमास।ये सुनकर आसमान बोला …..
तरसती हो तुम मेरे लिये जैसे
मैं भी तरसता हूँ तुम्हारे लिये वैसे
मिलता रहूँगा, बरसता रहूँगा
अपने प्यार की बौछार लियेहोगा अनोखा अपना ये मिलन
सजेंगी बहारें, खिलेंगे उपवन
नव-कोंपलों , नव-जीवन
और नव-उल्लास से
विकसित हो उठेंगे मधुबन।
जग भी करेगा सारा
हमारे इस प्यार का अभिनन्दन
मेरी प्रेयसी, मैं करता तुम्हारा वंदन
अब तो स्वीकार करो प्रिये !
मेरा यह प्रणय निवेदन,
मेरा यह प्रणय निवेदन।
ग़ज़ल और कविता
कितना खिलखिलाकर
हँसी थी मैं उस दिन
जब तुमने कहा था
ग़ज़ल लिखनी है
पर मौज़ूअ नहीं मिल रहामेरी उस खनकती
हंसी का राज़
समझ गए थे तुम
और मेरे साथ तुम भी
ख़ूब ज़ोर से हंसे थेअगर यूँ ही हँसते रहते हम
तो शायद कभी लिख ही न पाते
तुम्हारे लिखने के लिये
तुम्हारा रूठना ज़रूरी था
तुम्हारा टूटना ज़रूरी था
और मेरे लिये
रूठकर व टूटकर भी
मेरा तुम्हें मनानावो थी तुम्हारी ग़ज़ल
और ये है मेरी कविता
कहो कौन-सी ख़ूबसूरत हुई?
गिरह
हर गिरह दिल की खुलती गयी
जब खुद को उनसे बंधा पाया
रखे जिस हाल में भी, रह लेंगे
वो ही मेरा हमदम, वो ही सरमायाबंद लबों से थी शिकायत कल तक
आज इनकी ख़ामोशी को सुनते हैं
बेइंतहा मोहब्बत करते हैं तुमसे
इन्होंने अभी-अभी है ये फ़रमायातू जो न कहे, तो भी हम सुन लेते हैं
तू जो न सुने तो भी अपनी कह लेते हैं
जिस्म दो हैं पर रूह एक हो जाती है
हमें तो इश्क़ ने बस यही है समझाया
रास्ते
- सीला-सीला सा है मन..बारिश की गिरती बूँदेंदेखो सीली हुई ज़मीं भी ..ये बिन मौसम बरसात हैया मेरे ही मन की बात है??..सड़क पर तेज़ दौड़ती गाड़ियांगुमां होता है मानों कुछ छूट रहा होवहीं सामने से आती तेज़ रोशनीसीले रास्तों से मिलकरप्रतिबिम्ब बनाती है स्मृतियों काऔरऔर उजली होती हैं राहें…जान गयी हूँ मैंजो पीछे छूटता है वो भूलता नहींरोशन करता है राहों कोऔर मैंएक बार फिर मुस्कुराकरकुछ और आत्म विश्वास के साथअपना अगला कदम बढ़ा देती हूँएक अनजान नयी मंज़िल की ओर