
A professional writer. Made his name in writing poems, stories and as a advertising writer. Also his contribution in writing many episodes, dramas, dozens of print and many adds of digital and outdoor. Now he is a creative writer in India's top most Media group known as Rajasthan Patrika. Mr Anuj made his own world of rhymes and stanza beyond the worlds of crowd and deteriorating. This is his craze, zeal, fade to life. Or in other words we called it DHUN ZINDAGI KI.
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Short Description
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Interview
This is testing Interview for BOok.
वैश्या का वर्जिन होना
ईमानदार होना बस इतना ही सच है
जब तक पकड़े ना जाना
और एक नेता का ईमानदार होना उतना ही सच है
जितना की एक वैश्या का वर्जिन होनाभ्रष्टाचार उतना ही बड़ा है
जितना ईमानदारी का ढोंग
सच्चाई, ईमानदारी, वफादारी आज सिर्फ
बेईमानों, चोर – उच्चकों, नेताओं का गहना हैसच्चाई खुद सच की तलाश में है
वफा को अब आस नहीं सनम और माशूका की
अब हर कोई यहां जिस्म की तलाश में हैआज झूठ सच बन के काम आ रहा है
हर ईमान को बचाने में चोर दरवाज़ा काम आ रहा हैसच्चाई, ईमानदारी और वफा को इंतज़ार है
सच का, ईमान का, वफादार का
जैसे एक दुल्हन को अपने पिया का परदेस से लौटने का इंतजार हो
पर अब वो भी कहीं शहर में किसी के साथ मस्त है
क्या पड़ी उसको वफा की
जिस्म – जिस्म की चाहत में हर कोई त्रस्त है।।
परिवार का ख़्याल
फटी एड़ियां
घिसी चप्पलें
पसीने से भी रहता तर-बतर
खूब पसीना मेहनत करता
परिवार की ज़रूरतें ही नहीं
बच्चों की ख़्वाहिशें भी पूरी करता
मुस्कुराकर हर दर्द छुपाता
पूछने पर बस कुछ नहीं
यूं ही हर मर्ज़ छुपाता
तपती धूप में मेहनत से
शायद इसलिए भी जी नहीं चुराता
परिवार का ख़्याल जो हरदम सताता
खूब पसीना बहाता मेहनत करता
परिवार की ज़रूरतें ही नहीं
बच्चों की ख़्वाहिशें भी पूरी करता
पाई-पाई जोड़कर जो भी थोड़ा बहुत बचाता
फिर भी पूरा कुछ ना हो पाता
पता नहीं कैसे हिम्मत जुटाता
कहीं से उधार कहीं ब्याज़ से पैसा वो लाता
बेटी का ब्याह भी रचाता
बेटे को भी पढ़ा- लिखाकर क़ाबिल बनाता
खूब पसीना बहाता मेहनत करता
परिवार की ज़रूरतें ही नहीं
बच्चों की ख़्वाहिशें भी पूरी करता ।।
रुकता नहीं…
दिन भर की थकान से चूर रात को वैसे ही पड़ जाता हूँ
जैसे की एक मुर्दा लेटा हो मुर्दा शय्या पर
मुर्दे को मृत्यु के बाद दी जाती है मुखाग्नि
पर मैं ठीक वैसे ही हर सुबह जाग उठता हूँ
अपने अंदर लगी आग को बुझाने की चाह में
दौड़ता हूँ, चलता हूँ, थकता हूँ पर रुकता नहीं।न जाने कितनी चाहतों को अपने अंदर लिए
हार थक के भी काम करता हूँ
कभी मुझमें चाहत होती है उन सभी सपनों को पूरा करने की
तो कभी ज़रूरतों को पूरा करने की जदोजहद में खुद से भी लड़ जाता हूँ
थकता हूँ, थोड़ा रुकता हूँ पर कभी हार नहीं मानता।कभी थोड़ी निराशा भी होती है हावी मुझ पर
लेकिन हाँ थोड़ी देर में ही उठ खड़ा होता हूँ
ठीक वैसे ही जैसे एक स्खलित आदमी का कामोत्तेजना की चाह में फिर से खड़ा हो जाना
ऐसे ही रोज़ दौड़ता हूँ, चलता हूँ, थकता हूँ पर रुकता नहीं।।
इस बार जब भी आओ
मैंने अपने हिस्से के सारे सुख
बचा रखे हैं तुम्हारे लिए
इस बार जब भी आओ
अपने सारे दुःख, दर्द, आँसू
समेट लाना एक पोटली में।
मैं उस पोटली को बिना खोले
रख लूँगायह भी नहीं कहूँगा कि
तुम अपना हाथ आगे करो
मैं इसे थामना चाहता हूं।
मैं दबा दूँगा मेरी इस इच्छा को भी उन
ख्वाबों की तरह जो कभी मुकम्मल
नहीं होते।ये सब जानते हुए भी कि मेरी
इस ख़्वाहिश का पूरा होना
मुकद्दर में नहीं तब भी मैं
इसी वादे के साथ हमेशा तुम्हारा हाथ
थामे रखना चाहूँगा,जब तक कि नब्ज़ बन्द नहीं हो जाती।
मैं जानता हूं ये सब तुम्हें नागवार होगा
लेकिन तब भी मेरा हाथ बिन बढ़ाए
गुरुत्वाकर्षण के नियम की तरह
तुम्हारी ही तरफ होगा।।